बाल विवाह उन्मूलन एक कानूनी और सामाजिक प्रतिबद्धता : दिनेश कुमार जलुथरिया
टोंक। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा बाल विवाह के विरूद्ध जारी की गई योजना नालसा (आशा-जागरूकता, समर्थन, सहायता और कार्रवाई) मानक संचालन प्रक्रिया-बाल विवाह से मुक्ति की ओर अग्रसर, 2025) के अन्तर्गत राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जयपुर के निर्देशों पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, टोंक द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा सहयोगिनियों, एनजीओ कार्यकर्ताओं एवं अन्य स्वैच्छिकों हेतु बाल विवाह की रोकथाम हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण टोंक सचिव एवं अपर जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार जलुथरिया ने कहा कि बाल विवाह केवल एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक बुराई है, जो बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को बाधित करता है। इसे समाप्त करने के लिए हमें न केवल कानून लागू करना होगा, बल्कि सामाजिक जागरूकता भी बढ़ानी होगी। आशा इकाई और परामर्श निकाय की भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बाल विवाह को रोकने हेतु पैनल अधिवक्तागण, पैरालीगल वॉलियेन्टर, बाल विवाह निषेध अधिकारी, आंगनबाड़ी एवं आशा कार्यकर्ताओं, एनजीओ को स्थानीय क्षेत्रों में सक्रिय रूप से जुडऩा होगा। सामुदायिक स्तर पर रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूत करना और स्थानीय अधिकारियों के साथ तालमेल बढ़ाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। तहसीलदार व बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी मानवेन्द्र सिह जायसवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि सामुदायिक सहभागिता के बिना बाल विवाह उन्मूलन संभव नहीं है। हमें स्थानीय संगठनों, गैर-सरकारी संस्थाओं और स्वयंसेवकों को सक्रिय रूप से इस मुहिम में शामिल करना होगा। उन्होंने हेल्पलाइन सेवाओं, शिकायत निवारण तंत्र, और निगरानी समितियों की मज़बूती पर बल दिया। बाल विवाह रोकथाम का प्रभावी तरीका यह है कि समुदाय स्वयं जागरूक होकर इसे अस्वीकार करे और कानूनी कार्रवाई की मांग करे। एलएडीसी चीफ रमेश शर्मा ने बाल विवाह से संबंधित कानूनी प्रावधान एवं न्यायिक परिप्रेक्ष्य में कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत बाल विवाह अवैध है। इसके तहत दोषियों पर कठोर दंड का प्रावधान है। उन्होंने नवीनतम सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देशों का उल्लेख करते हुए बताया कि बाल विवाह के मामलों में न्यायालय तत्काल संज्ञान लेता है और स्थानीय प्रशासन की भूमिका को सख्ती से लागू करने पर जोर देता है। स्थानीय जागरूकता अभियान और जिला स्तर पर रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूती देने से बाल विवाह मामलों की संख्या को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है। जिला बाल संरक्षण इकाई सहायक निदेशक नवल खान ने बाल विवाह के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव पर बताया कि बाल विवाह के कारण पीडि़तों के शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक स्वतंत्रता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह ना केवल उनके व्यक्तिगत विकास को बाधित करता है बल्कि पूरे समाज पर नकारात्मक असर डालता है। उन्होंने पुनर्वास योजनाओं की आवश्यकता पर बल दिया, जिसमें पीडि़तों को शिक्षा एवं आजीविका के अवसर प्रदान करना शामिल है। अगर हम पीडि़तों को सही तरीके से पुनर्वासित करें तो वे समाज में सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं और बाल विवाह रोकथाम में स्वयं भी योगदान दे सकते हैं। एलएडीसी डिप्टी चीफ मोहम्मद सलीम ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में जागरूकता अभियान और प्रचार रणनीतियों के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि कानूनी ज्ञान को प्रभावी ढंग से समाज में पहुंचाने के लिए हमें व्यापक प्रचार अभियान चलाने होंगे। नुक्कड़ नाटक, रेडियो प्रसारण और सोशल मीडिय़ा अभियानों से जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने विद्यालयों एवं कॉलेजों में मासिक जागरूकता कार्यक्रमों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होने आगे कहा कि अगर हम युवा पीढ़ी को शिक्षित करें, तो वे स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहेंगे और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। शालू सैन, मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता ने बाल विवाह पीडि़तों की मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर कहा कि बाल विवाह पीडि़तों को न केवल सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, बल्कि वे गहरे मानसिक तनाव से भी गुजरते हैं। हमें उनकी भावनात्मक स्थिति को समझकर सही परामर्श एवं सहायता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने मनोवैज्ञानिक परामर्श के प्रभावी तरीकों की जानकारी देते हुए बताया कि सहानुभूति आधारित हस्तक्षेप पीडि़तों के पुनर्वास में मदद करता है। उन्होने कहा कि एक सुरक्षित और सहायक वातावरण प्रदान करने से पीडि़तों को अपनी नई जिंदगी बसाने में मदद मिलती है। आनंद शर्मा ने व्यावसायिक प्रशिक्षक ने आर्थिक सशक्तिकरण द्वारा पुनर्वास योजना पर कहा कि बाल विवाह से पीडि़त बालिकाओं को स्वतंत्र जीवन जीने और आत्मनिर्भर बनने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों से जोडऩा आवश्यक है। उन्होंने स्वरोजगार एवं सरकारी पुनर्वास योजनाओं पर जोर दिया, जिससे पीडि़तों को स्थायी रोजगार के अवसर मिल सकें। अगर हम आर्थिक रूप से मजबूत पुनर्वास मॉडल लागू करें, तो पीडि़तों को समाज में पुन: स्थापित करने में सफलता मिलेगी। समापन वक्तव्य में सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण टोंक एवं अपर जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार जलुथरिया ने कहा कि बाल विवाह समाप्ति केवल कानून लागू करने से संभव नहीं है। इसके लिए एक संगठित सामाजिक प्रयास की आवश्यकता है। सामुदायिक जागरूकता, पीडि़त पुनर्वास, और कानूनी प्रवर्तन को एक साथ लाकर हम बाल विवाह के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई लड़ सकते हैं। उन्होंने सभी हितधारकों को निरंतर जागरूकता अभियानों में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने का आग्रह किया और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण टोंक की प्रतिबद्धता दोहराई कि बाल विवाह उन्मूलन हेतु कानूनी प्रवर्तन, जागरूकता अभियानों, और पुनर्वास प्रयासों को निरंतर जारी रखा जाएगा। प्रशिक्षण कार्यक्रम में टोंक मुख्यालय में पैरालीगल वॉलियेन्टर्स, महिला बाल विकास विभाग की ओर से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, महिला अधिकारिता विभाग से साथिनों, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से आशा सहयोगिनियों, आशा यूनिट एवं मेन्टरिंग एवं मॉनिटरिंग बॉडी के सदस्य शैफाली जैन, सीडब्लयूसी, राजकीय महाविद्यालय के शिक्षाविद्, रोटेरी क्लब से अरिवंद विजय, मोईन निज़ाम, सामाजिक कार्यकर्तागण, शिव शिक्षा समिति व चाईल्डलाईन से कमलेश सैनी, सिकोईडिकोन से विमल कुमार बुन्देल आदि ने भी भाग लिया। तालुका मालपुरा, निवाई, उनियारा, देवली एवं टोडारायसिंह के हितधारकों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में ऑनलाईन भाग लिया।