महायज्ञ में अरणि मंथन से प्रकट हुए अग्निदेव, वेदमंत्रो से गुंजायमान हुई नाटेश्वर नगरी
नटवाड़ा (सच्चा सागर)। कस्बे में स्थित श्री बद्रीनाथ भगवान के मंदिर परिसर में मानव के कल्याण के लिए आयोजित नव दिवसीय 108 कुंडीय श्री चंडी महायज्ञ के तीसरे दिन बुधवार को यज्ञ हवन के लिए बने मंडप में अग्नि प्रकट करने की प्राचीन विधि और अद्भुत नवग्रह यज्ञ का साक्षी बना। यज्ञाचार्य प. जगदीश नारायण शास्त्री ने बताया कि बुधवार को शूभ मुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अरणि मंथन विधि से अग्निदेव को प्रकट कर अनुष्ठानो का शुभारम्भ किया गया। हवन कुंड में अग्नि को सुरक्षित किया गया एवं यज्ञ-हवन आरंभ हुआ। मंडप में ही नवग्रह यज्ञ किया गया जिसमें प्रधान यजमान दंपति पुण्यप्रताप करण एवं नीता कंवर द्वारा एक ग्रह की 1008 आहुतियां दी गईं। वरुण मंडल, योगिनी मंडल स्थापन, क्षेत्रपाल मंडल स्थापन, ग्रह होम, स्थाप्यदेव होम, प्रासाद वास्तु शांति सहित अनेक धार्मिक अनुष्ठानो का आयोजन किया गया। नवग्रह पूजा के बाद भगवान गणेश सहित अन्य देवी देवताओं की पूजा करने के बाद विभिन्न तीर्थ स्थलों का जल व मिट्टी हवन कुंड में डाली गई। अग्नि देव का आहान करने के बाद दोपहर 1:15 बजे अरणी मंथन हुआ फिर लकड़ी के दो टुकड़ों को आपस में घर्षण करने से अग्नि प्रज्ज्वलित हुई। ऐसे प्रज्ज्वलित होती है अग्नि यज्ञाचार्य प. जगदीश नारायण शास्त्री ने बताया कि शमी की लकड़ी का एक तख्ता होता है जिसमें एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह तेजी से चलाया जाता है। इससे तख्ते में चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, जिसे नीचे रखी घास व रूई में लेकर उसे हवा देकर बढ़ाया जाता है। इसी अग्रि का यज्ञ में उपयोग किया जाता है। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहते हैं। अरणी को नीचे रखकर उसमें बने छेद में मंथा के टुकड़े को रखकर फिर मंथा को डोरी की मदद से ऐसे मंथा जाता है। जैसे छाछ से मक्खन निकालने के लिए किया जाता है। मंथन से लकड़ी के दो टुकड़ों के बीच घर्षण से आग पैदा हो जाती है।