टोंक जिले के 21 स्कूलों को मिला मरम्मत बजट, लेकिन 200 से ज़्यादा स्कूल अब भी जर्जर हालात में — “बजट की बारिश, पर टोंक प्यासा”
टोंक। राजस्थान सरकार ने राज्यभर के 1936 राजकीय विद्यालयों की मरम्मत के लिए ₹169.52 करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति जारी कर दी है। इस राहत योजना में टोंक जिले के केवल 21 स्कूलों को शामिल किया गया है, जिनके लिए ₹3.90 करोड़ का बजट आवंटित हुआ है। जबकि जिले में 200 से अधिक राजकीय विद्यालय ऐसे हैं जो वर्षों से मरम्मत की बाट जोह रहे हैं।इस असमानता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि टोंक जिले की शिक्षा व्यवस्था बजटीय प्राथमिकता में कहीं पीछे छूट रही है।
ब्लॉकवार आंकड़े: कुछ को थोड़ा, कुछ को कुछ भी नहीं!
ब्लॉक स्वीकृत स्कूल स्वीकृत राशि (₹ लाख)
निवाई (NEWAI) 7 ₹132.14
देवली (DEOLI) 3 ₹48.63
मालपुरा (MALPURA) 3 ₹45.61
उनियारा (UNIYARA) 5 ₹65.20
टोंक शहर (TONK) 1 ₹16.00
पीपलू (PEEPLU) 3 ₹39.06
टोडारायसिंह 2 ₹44.00
कुल 21 स्कूल ₹390.64 लाख
> टोंक जिले के कुल 7 ब्लॉक में से हर ब्लॉक में जर्जर भवनों की भरमार है, लेकिन मरम्मत की योजना सिर्फ नाममात्र की है।
हकीकत: स्कूल या खतरे का घर?
कई स्कूलों की छतें टपकती हैं, दीवारें दरकी हुई हैं और शौचालय उपयोग लायक नहीं हैं।
बारिश के मौसम में स्कूलों में पढ़ाई नहीं, पानी घुसता है।
कहीं टीन शेड हैं, तो कहीं कक्षा ही खुले आसमान के नीचे।
> “बच्चे हैं भविष्य, पर हम उन्हें खतरे में भेज रहे हैं” — एक प्रधानाध्यापक, निवाई ब्लॉक
प्रदेश से तुलना: टोंक पिछड़ा क्यों?
जिला स्कूल स्वीकृत बजट (₹ करोड़)
जयपुर 120 ₹9.80
अजमेर 102 ₹8.15
बांसवाड़ा 90 ₹6.84
भीलवाड़ा 85 ₹7.22
टोंक 21 ₹3.90
राज्य के कुल बजट का मात्र 2.3% टोंक को मिला, जबकि समस्या पूरे प्रदेश जितनी ही गंभीर है।
जिम्मेदार कौन? योजना के क्रियान्वयन पर सवाल
1. क्या सर्वे सिर्फ कागजों तक सीमित था?
2. क्या पंचायत और शिक्षा विभाग ने सही रिपोर्ट नहीं भेजी?
3. क्या टोंक जिले को जानबूझकर कमज़ोर किया गया?
“सालों से मरम्मत नहीं हुई, बच्चे डर के साये में पढ़ रहे हैं। अब भी सिर्फ 21 स्कूल? ये मज़ाक है या विकास?” ग्रामीण शिक्षक, पीपलू ब्लॉक
जनता की मांग:
हर ब्लॉक में वास्तविक सर्वे कर जर्जर स्कूलों को प्राथमिकता दी जाए
मरम्मत कार्य में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित होअगली प्रशासनिक स्वीकृति में टोंक जिले को न्याय मिले राज्य सरकार की मंशा सराहनीय है, लेकिन ज़मीनी क्रियान्वयन में टोंक जिला फिर से पिछड़ गया। शिक्षा के नाम पर आंकड़े चमकाना आसान है, लेकिन बच्चों की सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए बजट में समानता और प्राथमिकता ज़रूरी है।