नशाखोरी:
उडता पंजाब की राह पर हमारे गांव...
घर, परिवार, मानसम्मान और धन बरबाद
-मदन कोथुनियां
प्रसिद्व साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन के काव्यसंग्रह मधुशाला में मदिरा सेवन का खूबसूरती से महिमामंडन किया गया है. मदिरा के अतिरिक्त चरस, गांजा, स्मैक, अफीम, हीरोइन जैसे अनेक ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिन से मनुष्य अपनी नशे की लत को पूर्ण करता है. अपनी मौजमस्ती और यारीदोस्ती निभाने के लिए किए गए किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ के जहर का सेवन न जाने कितने परिवारों की सुखशांति को छीन लेता है और कितने ही घर बरबाद कर देता है. मदिरा का सेवन तो आजकल स्टेटस सिंबल माना जाता है. कभीकभार किया जाने वाला नशा जब लत में परिवर्तित हो जाता है तो नशा करने वाले का शरीर अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. इस से वह स्वयं तो परेशान रहता ही है, उस के घरपरिवार वालों को भी अनेक आर्थिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
जगन (बदला हुआ नाम) पिछले 5 सालों से स्मैक पी रहा है. उस का शरीर स्मैक का इतना आदी हो गया है कि अगर उसे स्मैक की डोज नहीं मिले तो उस के हाथपैर कांपने लगते हैं. और उसे लगता है कि जान ही निकल जाएगी. उस के परिवार में 10 साल की बेटी और 4 साल का बेटा के अलावा पत्नी, मातापिता और एक भाई हैं. परिवार वाले पिछले कई सालों में न जाने कितने मंदिर, पीरफकीर, सत्संग, देवीदेवताओं के ले गए कि किसी प्रकार जगन की नशे की लत छूट जाए पर इन जगहों पर क्या किसी को कोई लाभ हुआ है? झाड़फूंक करने वालों और गंडेताबीज बनाने वालों की शरण में भी गए पर ये तमाम अंधविश्वासी टोटके नाकाम साबित हुए.
कल्लन (बदला हुआ नाम) 8 साल से गांजे का सेवन कर रहा है. घर वाले परेशान रहते थे परंतु उन की लत के आगे बेबस थे. प्रारंभ में उन की पत्नी उन्हें हर रोज एक महाराज के सत्संग में ले जाती थी क्योंकि महाराजजी ने उन की नशे की लत छुड़ाने की गारंटी ली थी. उन्होंने कहा था कि प्रतिदिन सत्संग में लाने से उन की नशे की लत भगवान भक्ति में लग जाएगी. सुबह पत्नी उन्हें जबरदस्ती सत्संग में ले जाती और शाम को वे नशे में धुत हो कर पत्नी को ही गाली देता और घर से निकल जाता. पड़ोसी उसे किसी तरह घर ले कर आते. अंत में पत्नी ने हार मान कर उसे उसके हाल पर छोड़ दिया.
मोहन (बदला हुआ नाम) बहुत अच्छे घर से हैं. घर में कोई भी नशा नहीं करता. प्रारंभ में दोस्त जबरदस्ती उन्हें पिलाते थे पर धीरेधीरे उन्हें भी मजा आने लगा. फिर तो यह स्थिति हो गई कि जिस दिन उन्हें शराब नहीं मिलती थी, न भूख लगती थी न प्यास. बस, एक शराब ही थी जो उन्हें संतुष्टि देती थी. मातापिता बहुत परेशान रहते थे, घर में कलह होता था, और एक दिन गुस्से में आ कर उन के पिता ने उन्हें घर से ही निकाल दिया. उन की मां ने शराब की लत छुड़ाने के लिए कई उपवास किए. घर में हवन, कथा करवाई. पर नतीजा सिफर.
: उपरोक्त सभी नशा करने वाले लोग जयपुर के नशा मुक्ति केंद्र में भरती हैं. जब एक नशा करने वाला इस अवस्था में पहुंच जाता है कि नशे के बिना वह रह नहीं पाता तो ऐसी अवस्था में फंसे लोगों की लत छुड़ाने के लिए सरकार ने नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना की है. इन आवासीय नशा मुक्ति केंद्रो में विभिन्न प्रकार के नशा करने वालों को काउंसलिंग, डाक्टरी सहायता और मनोरंजन द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है. यहां मरीज या तो स्वयं आते हैं अथवा मित्र या परिवार वाले ले कर आते हैं. लगभग 15 से 45 दिनों के उपचार के बाद यहां से मरीजों को छुट्टी दे दी जाती है.
नशे की लत जब एक बार शरीर को लग जाती है तो उसे किसी भी कीमत पर नशे की डोज की आवश्यकता होती है. एक नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी राजेश कुमार बताते हैं कि यों तो सभी प्रकार के नशे खर्चीले होते हैं परंतु स्मैक का नशा सर्वाधिक खतरनाक और खर्चीला होता है. 0.10 ग्राम स्मैक की पुडि़या 3000 रुपए में आती है और एक नशेड़ी एक दिन में 2-3 पुडि़यों का सेवन तो करता ही है. यानी प्रतिदिन 6 से 9 हजार रुपए का खर्चा.
जब नशा करने वाले को पैसे नहीं मिलते तो वह बेचैन हो जाता है और पत्नी, मां के गहने व घर का सामान तक बेच देता है. नशा कोई भी हो, उसे करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और जब नशेडि़यों को सुगमता से पैसे प्राप्त नहीं होते तो वे चोरी, डकैती और लूटमार जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं.
समाज में नशा करने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. नशा करने वालों और उन के परिवार के प्रति लोगों का सम्मान समाप्त हो जाता है. परिवार के सदस्य स्वयं भी आत्मविश्वास की कमी के कारण लोगों से बातचीत करने में कतराते हैं. नशा चाहे किसी भी प्रकार का हो, नुकसानदायक ही होता है. बेहतर है कि इस का शौक पालने से ही बचा जाए. आमतौर पर इस प्रकार का शौक यारीदोस्ती में उत्पन्न होता है. इसलिए आवश्यक है कि ऐसे लोगों से समय रहते दूरी बना ली जाए. कई बार नशा मुक्ति केंद्र में रहने के बाद नशे की लत से मुक्ति मिल जाती है परंतु घर जा कर यारदोस्तों के प्रभाव में आ कर व्यक्ति फिर से नशा प्रारंभ कर देता है. नशा करने वाला तो अपनी मौजमस्ती करता है परंतु मानसिक, आर्थिक और सामाजिक तकलीफ व परेशानी उस के परिवार को सहनी पड़ती है.
(क्रमशः जारी....)