दुविधा की पीर में डूबा दतवास, विकास के नाम पर 'गड्ढा-युग' का उद्घाटन! जिम्मेदार अगर शर्म से न झुके तो ये भी 'स्थाई समस्या' है!

 दुविधा की पीर में डूबा दतवास, विकास के नाम पर 'गड्ढा-युग' का उद्घाटन!  जिम्मेदार अगर शर्म से न झुके तो ये भी 'स्थाई समस्या' है!







दतवास/निवाई ( रामबिलास लांगड़ी )  बीसलपुर पेयजल योजना ने दतवास-निवाई में पानी के साथ-साथ गड्ढों की भी सौगात दे दी है। पहले सुविधा के नाम पर पाइप लाइन डाली गई और अब दुविधा के नाम पर गड्ढों को खुला छोड़ दिया गया — ताकि जनता को हमेशा याद रहे कि ‘विकास’ आया था… और जाते-जाते सड़कें चबा गया। जहाँ पाइपलाइन गई, वहाँ सड़क की लाश पड़ी है, और जहाँ गड्ढा है वहाँ प्रशासन की आत्मा। जलभराव ऐसे कि मच्छर पार्टी जश्न में व्यस्त है, और हादसे रोज़ाना ‘विकास स्मृति स्थल’ बना रहे हैं। सरकारी मंत्री मदन दिलावर जी भले ही साफ-सफाई के लाखों के भुगतान की डींग हांकते हों, लेकिन हकीकत ये है कि इन रुपयों की सफाई हो चुकी है — बजट स्वच्छ, गाँव गंदा!

सरपंच साहब और ग्राम विकास अधिकारी शायद गुप्त अभियान पर हैं — "कैसे स्वच्छ भारत मिशन को गड्ढा भारत मिशन में बदला जाए।" पौपा बाई के जमाने की कहावत “खा-पी के सो जा” यहां प्रशासनिक सिद्धांत बन गई है। गाँव में सफाई से ज्यादा गंदगी है, लेकिन सबसे ज्यादा सफाई से तो सफाई का बजट ‘साफ’ हो गया है।

“गड्ढे देखो, समझो पैसा गया है!” — यह नया नारा हो गया है दतवास में। कितनी शर्मनाक विडंबना है कि करोड़ों की बीसलपुर योजना के बाद भी लोग पानी के लिए परेशान हैं और जहां पाइपलाइन पड़ी है वहां अब ‘गड्ढा स्नान’ संभव है। प्रशासन कहता है “हमने गड्ढे भर दिए” — हाँ, शायद फोटो खिंचवाने के लिए मिट्टी डाली थी, फिर जनता को ठेंगा दिखाकर दोबारा गड्ढा खोल दिया।


अफसरों से सवाल है: सड़क बनाने के लिए आए भुगतान का हिसाब कहां है? स्वच्छ भारत की शपथ लेने वाले अधिकारी अब गड्ढों पर मौन क्यों हैं? क्या विकास सिर्फ कागजों पर होता रहेगा, और जनता की हड्डियाँ गड्ढों में टूटती रहेंगी? टोंक जिला प्रशासन, पंचायत राज विभाग, और जलदाय विभाग सब मिलकर “गड्ढा युग” की नींव मजबूत कर चुके हैं। ग्रामीणों को अब 'पाइपलाइन' नहीं, 'पाई-लाइन' की जरूरत है — कि किसे कितना हिस्सा मिला और कब खाया गया? शर्म करो, कुछ तो शरम करो — वरना जनता अब गड्ढों में नहीं, चुनाव में जवाब मांगेगी!"

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