शख्सियत: दिव्यांगता नहीं बनी कमजोरी, बनी प्रेरणा – मोहनलाल गुर्जर की सफलता की कहानी

 शख्सियत:  दिव्यांगता नहीं बनी कमजोरी, बनी प्रेरणा – मोहनलाल गुर्जर की सफलता की कहानी


रामबिलास लांगड़ी 

प्रबंधन संपादक दैनिक सच्चा सागर टोंक 


"बहार बैठ कर ताली बजाने से अच्छा है, मैदान में उतरकर हार जाओ" –




 इस सोच को आत्मसात कर मोहनलाल गुर्जर ने अपने जीवन को केवल जिया नहीं, बल्कि उसे मिशाल बना दिया। ग्राम कठमाना, तहसील पीपलू, जिला टोंक में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे मोहनलाल ने विषम परिस्थितियों में भी अपने हौसले को कभी टूटने नहीं दिया।

तीन-चार वर्ष की आयु में एक दुर्घटना ने उन्हें दिव्यांग बना दिया। बाड़े की किवाड़ी से गिरने पर उनके पैर की हड्डी में गंभीर चोट आई। जयपुर के एसएमएस अस्पताल में ऑपरेशन के बावजूद उनका पैर पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया, और वे हमेशा के लिए दिव्यांग हो गए। मगर वे न कभी रुके, न झुके।


"कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती" – 


इस पंक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने शिक्षा की राह को कभी नहीं छोड़ा। चिमनी और लेम्प की रोशनी में गांव की पाठशाला से दसवीं में प्रथम स्थान प्राप्त किया, फिर रानोली से 12वीं भी टॉप की। राजस्थान कॉलेज, जयपुर से स्नातक और राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर किया। साथ ही BSTC, B.Ed, NET व JRF जैसी योग्यताएं प्राप्त कीं। साल 2009 में उनका चयन पोस्ट ऑफिस में पोस्टल असिस्टेंट पद पर हुआ। आठ वर्षों तक फागी, सांभरलेक, जयपुर आदि स्थानों पर सेवा देने के बाद अध्यापक भर्ती परीक्षा में सफल होकर वर्तमान में वे राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, जयकिशनपुरा में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।


"जहां चाह, वहां राह" –

 मोहनलाल ने शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी खुद को साबित किया। जब वे पोस्टल असिस्टेंट के रूप में गांधीनगर, जयपुर में कार्यरत थे, तब राजस्थान के रणजी क्रिकेटर विनीत सक्सेना से मुलाकात हुई, जिन्होंने उन्हें दिव्यांग खेलों की जानकारी दी। गांव के पीटीआई गिरिराज जी के सहयोग से उन्होंने भाला फेंक प्रतियोगिता में भाग लिया और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। इसके बाद कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर स्वर्णिम सफलता प्राप्त की। जयपुर में नेशनल एथलेटिक्स के दौरान वॉलीबॉल खिलाड़ियों पप्पू सिंह और दातार सिंह गुर्जर से प्रेरित होकर वॉलीबॉल से जुड़े और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थाईलैंड और चीन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इराक में चयन होने के बावजूद कोविड के कारण जाना संभव नहीं हो सका।


सम्मान और उपलब्धियां: राज्य स्तरीय दिव्यांग पुरस्कार – 2019, दिव्यांग रत्न – 2020, शिक्षा रत्न अवार्ड – 2024, गुर्जर गौरव सम्मान – जोधपुरिया ट्रस्ट, युथ आइकॉन अवार्ड – 2019 (आगरा), नवाचारी शिक्षक सम्मान – गुजरात, गांव का गौरव सम्मान – एकलव्य संस्था, स्वर्ण भारत राष्ट्रीय खेल रत्न,  शिक्षक सम्मान राज्य स्तरीय 2024 पुरस्कार  मोहनलाल गुर्जर न केवल स्वयं के लिए बल्कि अगली पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा हैं। उनके निर्देशन में अब तक 15-20 विद्यार्थी राज्य स्तरीय खेलों में भाग ले चुके हैं। वे शिक्षा और खेल दोनों के क्षेत्र में समर्पण के साथ कार्य कर रहे हैं। उनका जीवन इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि "मेहनत का फल और समस्या का हल, देर से ही सही पर मिलता जरूर है।" उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी कमजोरी नहीं माना, बल्कि उसे अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया। उनके बड़े भाई गोपाल गुर्जर, जो राजस्थान पुलिस में हैं, हमेशा उन्हें प्रेरित करते रहे। मोहनलाल की सफलता उन सभी के लिए प्रेरणास्रोत है, जो मुश्किलों से हार मानने की बजाय उनका सामना करना चाहते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची लगन, मेहनत और आत्मविश्वास से हर बाधा को पार किया जा सकता है।

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