*ऐसे तो सरकार का रूतबा कायम कैसे रहेगा*
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*भाजपा के विधायक ही वसूली,अपनी उपेक्षा, अफसरों की मनमानी की बात कर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं सरकार को*
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*■ओम माथुर■*
पहले खींवसर के भाजपा विधायक रेवतराम डागा, फिर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, उसके बाद निंबाहेड़ा के विधायक श्रीचंद कृपलानी और बेगूं के विधायक सुरेश धाकड़। इनके अलावा भी भाजपा के कई अन्य विधायक अपनी ही राजस्थान सरकार के कामकाज और अफसरों की कार्यशैली पर सवाल उठाकर उसे कटघरे में खड़ा करते रहे हैं। ताजा मामला कृपलानी का है। पिछले दिनों चित्तौड़गढ़ जिला परिषद की बैठक में उन्होंने कहा कि चित्तौड़ में हाईवे पर आरटीओ की टीम खुलेआम वसूली कर रही है। ट्रकों को लाइन लगाकर रोका जाता है और पैसे लिए जाते हैं। आरटीओ से पूछो तो वह डीटीओ से बात करने को कहता है। डीटीओ से कहो तो वह इंस्पेक्टर से बात करने में कहता है। इंस्पेक्टर कहता है,सब ऊपर से तय होता है। विभाग के अधिकारियों ने वसूली के लिए प्राइवेट आदमी लगा रखे हैं। जो आने वाले वाहनों को डंडा लगाकर रोक लेते हैं। बैठक में मौजूद बेगूं विधायक धाकड तो ये कहते हुए बैठक छोडकर चले गए ,लोगों के काम होते ही नहीं। मैं तो विधायक ही नहीं रहना चाहता। इसके पहले खींवसर विधायक डागा भी कह चुके हैं कि खींवसर में तो सांसद हनुमान बेनीवाल का ही डंका बजता है। सारे अधिकारी उनके कहने पर नियुक्त होते हैं और सारे काम और तबादले भी उन्हीं के कहने से होते हैं। इसके उन्होंने बाकायदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखा था।
इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने झालावाड़ जिले में पानी की किल्लत को लेकर जलदाय विभाग के अधिकारियों से नाराजगी जताकर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों म़े हडकंप मचा दिया था। किरोड़ीलाल मीणा तो खैर मंत्री होते हुए भी विपक्षी नेताओं जैसे सरकार को परेशान करते रहे हैं। इनके अलावा कई विधायक अपने इलाकों में सरकारी अफसरों की मनमानी और अपनी उपेक्षा के खिलाफ आवाज उठाते कर रहे हैं। कुछ विधायकों ने तो विधानसभा सत्र में भी अपनी सरकार को जीभर के घेरा था। तबादलों को लेकर भी कई विधायकों ने विरोध दर्ज कराया था।
भ्रष्टाचार,अवैध वसूली,रिश्वतखोरी,अवैध खनन,शराब तस्करी और अवैध बिक्री,अवैध बजरी खनन जैसे कई काम हर सरकार के दौरान होते हैं और हमारे विकसित सिस्टम में इनका रूकना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है,क्योंकि इनसे एकत्र करोड़ों-अरबों रूपए का बंटवारा नीचे से ऊपर तक होता है। अफसरों से लेकर नेताओं तक। भारतीय जनता पार्टी हमेशा कांग्रेस को इस बात के लिए कोसती रही है कि उसके शासनकाल में भ्रष्टाचार और माफियागिरी खुलकर की जाती थी। लेकिन अब कांग्रेस सरकार को गए करीब डेढ़ साल हो गया है। लेकिन हालात में कोई अंतर नजर नहीं आ रहा है।भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी तथा अफसरों की मनमानी और दादागिरी उसी तरह चल रही है, जैसे अशोक गहलोत के राज में चलती थी। सचिन पायलट की बगावत के गहलोत की तो सरकार बचाने की मजबूरी थी। इसलिए उन्होंने साथ देने वाले विधायकों और उन विधायकों ने अपने इलाके के अफसरों को खुलकर मनमानी करने की छूट दी थी। लेकिन भजन लाल शर्मा तो पूर्ण बहुमत में है और उनसे यह उम्मीद थी की वो राजस्थान में सुशासन की मिसाल कायम करेंगे। पहली बार विधायक बनने के बाद भी उन्हें सीएम और कई वरिष्ठों के अरमानों पर पानी फेरकर मंत्री भी नए बनाए गए। लेकिन फिर भी शासन-प्रशासन पर अभी भी नकेल नहीं कसी जा सकी है। किसी पूर्ण बहुमत की सरकार के विधायक और मंत्री ही अफसरों के सामने खुद को बेबस,उपेक्षित महसूस करें,उस सरकार का रूतबा और इकबाल कैसे बुलंद रह सकता है?
ये महज संयोग भी हो सकता है कि सरकार पर विधानसभा और बाहर अंगुली उठाने वाले अधिकांश विधायक वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाते रहे हैं। ऐसे में सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि क्या भजनलाल शर्मा और सरकार की छवि को खराब करने के लिए यह सिलसिला चल रहा है ? पार्टी की राजनीति को अलग भी रख दिया, तो इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य में अफसरशाही हावी है। लगातार मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा और फिर मामला शांत हो जाने से भी विधायकों में नाराजगी है। इसके अलावा भाजपा ने अब तक विभिन्न निगमों,बोर्डों, विकास प्राधिकरणों में मनोनयन नहीं किया है। जिससे बड़ी संख्या में नेताओं और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट किया जा सकता है। और तो और अभी तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ कार्यकारिणी तक नहीं बना पाए हैं, इसमें भी कई नेताओं को पद देकर संतुष्ट किया जा सकता है।
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