स्व. चंचल कुमार की प्रथम पुण्य तिथी
चल-ए नजार कुछ इस तरहां से कारवां के साथ
जब तू-न चल सके तो तेरी दास्ताँ चले
डॉ राजकुमार करनानी
ब्यूरो चीफ़ दैनिक नवज्योति
अगर आपकी इच्छा शक्ति हर उस पीडि़त दीन-हीन की सेवा कर उसे न्याय की दहलीज तक पहुंचाते है तो उसके लिए किसी पांवर पैसा या पद की आवश्यकता नही होती है,ऐसा ही विचार जनसम्पर्क विभाग मे वरिष्ठ लिपीक मे सेवानिवृत हुए स्व.चंचल कुमार रैगर की कार्यशैली से सच साबित होता है।
पिछले वर्ष की अपनी सेवानिवृति के कुछ माह बाद ही हंसते-खेलते-मुस्कराते यूं कर चले गये मानो उन्हे किसी की परवाह की नही
किन्तु किसी ने कहा है कि यूं तो आते है सभी मरने के वास्ते लेकिन मौत वही जिसका जमाना करे अफसोस।
बिते वर्ष आज ही के दिन चंचल कुमार रैगर अपने चहेतो मित्रो परिजनो को यू ही अकेला रोता-बिलखता छोड़ कर चले गये।
मै उनके काफी करीब था। वो उम्र मे मुझसे बडे थे इस लिहाज से भी उन्हे अपने बडे भाई की भांति सदैव सम्मान की दष्टि से ही बातचीत करता था और वो भी एक लघु भ्राता की भांति समय समय पर मार्गदर्शन देते रहे।
उनका हर दीन-हीन पीडित का दर्द अपना दर्द लगता था वो न उनका राजनेता थे न ही किसी टीम के कमाण्डर किन्तु उनके कलम की पैनी धार जब चलती थी तो लापरवाही मूक-बधिर शासन-प्रशासन एवं अच्छे अच्छे नेताओ की पीडित के दर्द की भाषा समझ मे आ जाती थी।
उनकी कार्यशैली से यहा तो साबित था कि मानवता की सेवा के लिए जरूरी नही की आप किसी पद पर हो अगर आपका जज्बा सच्चा और सही है तो आप कलम के माध्यम से भी मानवता की सेवा कर सकते है।
मेरी पत्रकारिता के क्षेत्र मे चंचल कुमार का मार्गदर्शन एक बडे भाई था अपने के प्रति जैसा रहा। उनके जीवन का अधिकांश समय सरकारी सेवाओ के बाद अगर परिवार को जिनका दिया उतना ही मुझे देते थे बीते वर्ष चंचल कुमार हमारे बीच नही रहे लेकिन उनकी कलम से हर मजलूम की सेवा उन्हे हजरो लोगो के दिलो मे सदैव जिन्दा रखेगी।
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