मनोज मीणा भैरुबूल्या
निवाई (सच्चा सागर ) निवाई तहसील मुख्यालय से 25 किलोमीटर पूर्व में जामडोली- शिवाड़ मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित है बहड़ गांव। शिवपुराण में उल्लेखित घुश्मेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग के घुश्मेश्वर महात्म में इस गांव का उत्तर दिशा के वृषभ द्वार के रूप में उल्लेख है। जो बाद में बैल, बहल से आम बोलचाल में अपभ्रंश होकर बहड़ हो गया। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष भी मिले हैं और एक जैन प्रतिमा भी यहां से मिली है। यहां प्राचीन सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त होते रहते हैं। बहड़ किले का विस्तृत इतिहास तो ज्ञात नहीं हो पाया है परन्तु स्थानीय युवा सावरा जाट और अन्य बुजुर्गो के अनुसार यहां नरुको का अधिपत्य रहा है और उन्हीं राजाओं ने इस किले का निर्माण करवाया है ।
पश्चिम से पूर्व की तरफ जाती अरावली पर्वत श्रंखला जो एक धनुषा कार आकृति की एक ऊंची पहाड़ी पर बैल के कुबड़ नुमा चोटी पर इस शानदार किले का निर्माण किया गया है। यहां इस किले को बनाने का कारण ये रहा होगा कि आसपास समतल मैदान है और ऊंची पहाड़ी जिससे बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा की जा सके। किले के चारो ओर एक मजबूत दीवार बनाई गई है। किले के पास ही धार्मिक आस्था का केंद्र काला गोरा भैरव मंदिर है जिनकी लोक में बहुत मान्यता है।
उत्तर दिशा से किले में जैसे ही हम एक संकरे दरवाजे से प्रवेश करते है तो दरवाजे के ऊपर एक मजबूत लकड़ी लगी है जो आज भी हैरान कर देती हैं। की ये इतना वजन कैसे सहन कर पा रही हैं।
जैसे ही आगे बढ़ते एक पानी का टांका आता है जो बेहतरीन उदाहरण है प्राचीन बरसाती जल संरक्षण का यहां ऐसा टांका आगे एक और है ।दोनों टांके गुप्त तहखाने नुमा बने है जहां पेंदे तक सीढ़ियां जाती हैं । जैसे ही हम यहां से पश्चिम की तरफ आगे बढ़ते हैं एक बड़ा दरवाजा आता है जिसे सम्भवत बाद के दिनों में सुरक्षा की दृष्टि से छोटा किया गया है । जो आज भी टिका है। पूरे किले को तीन भागों में बांटा गया है। जिसमे एक भाग तो रनिवास जैसा है वह ऊंचाई पर स्थित है। वह राजा का भवन रहा होगा । जहा वह अपने परिवार के साथ रहता था। बाए और बने छोटे कमरों में सैनिक और उनके परिवार रहते होंगे। किले में एक तरफ खुला सा स्थान है जिसका उपयोग सम्भवत उस समय राजा न्यायिक कार्यों के लिए करता होगा। किले में काफी शानदार बुर्ज बने जहा से दुश्मन को दुर से ही देख लिया जाता था।
किला काफ़ी जर्जर हो गया है।
बाद में बहड़ ठिकाने पर राजावतो का शासन रहा है। जयपुर महाराजा सवाई माधोसिंह जी के शासन काल में मिति जेठ सुदी 13 संवत् 1921(1864) को जयपुर रियासत के मलारना परगना के बहड़ गांव को 18 हजार बीघा जमीन के साथ राव विक्रमा दित्य जी को बक्शीस किया गया जो सारसोप ठिकाने के रहने वाले थे। उन्होंने अपने बेटे अमान सिंह को इस ठिकाने का जागीरदार बनाया और इन्होंने यहां किले के नीचे गढ़ बनाया । बहड़ ठिकाने पर झालावाड़ और जयपुर दो रियासतों का शासन रहा है। यहां के आखरी जागीरदार राव रणवीर सिंह रहे है। इस सम्बन्ध में जो दस्तावेज़ हैं वो आज भी पूर्व बहड़ ठिकाने के श्री वीरेन्द्र सिंह जी के पास मौजूद है।
धार्मिक आस्था से अभिभूत शासकों ने गांव के बीचों बीच एक ऊंचे चबूतरे पर श्री कल्याण महाराज का मंदिर बनवाया जो किले पर से देखने पर रथ जैसा दिखाईं देता है । पास में ही दादू पंथी आश्रम है जिसमें काफी खूबसूरत दो छतरियां बनी। यहां तीन बावड़ियां है जो काफी प्राचीन समय की है ।
बुजुर्ग बताते है की यहां एक प्राचीन तालाब है जो पानी की निरंतर समस्या के कारण किले के शासकों ने खुदवाया था आम जनता के लिए जो आज भी स्थित है। किला अपने जीर्णोद्धार की बाट जो रहा है । ये एक अच्छा पर्यटन स्थल हो सकता है ।
👍🏻👍🏻❤️
जवाब देंहटाएं