विरासत के झरोखे से रक्तांचल पर्वत का ताज है निवाई का किला

 मनोज मीणा भैरूबूल्या  


दैनिक सच्चा सागर (नि.स) 

निवाई किले की यह दीवारें सहसा ही अपने बीते हुए कल की याद दिला जाती हैं । कितने ही मौसम बदले नये लोग आए पुराने गए ,पर ये अपने स्थान पर अडिग होकर अपनी शौर्य गाथा का गान कर रही है । रक्तांचल पर्वत के पत्थरों को तराश कर जब कारीगर ने बनाया होगा तब उसे शायद ही ऐसा लगा होगा कि भविष्य में इस अद्भुद कारीगरी को समझने में लोग कई साल लगा देंगे । तब शायद ही उसे पता होगा की ये शानदार किला अधिकतर लोगों के लिए मात्र घूमने की जगह रह जाएगा ।कभी किले की बुर्ज पर खड़ा हो कर सहसमल नरूका खूबसूरत निवाई शहर का दीदार करता होगा । सच में इस किले  का हर पत्थर  कुछ न कुछ कहानी बया करता है । अरावली की पहाड़ी से जब पत्थरों को किला बनाने के लिए यहां लाया जा रहा होगा तो किसी को पता नहीं होगा की कौनसे पत्थर का कौनसा टुकड़ा कहा लगेगा । सच है दीवार बात करती हैं बस आपकी नजर दिल ओर दिमाग इन्हे सुने किले के इन बुर्जो  ने कितने ही युद्ध, मौसम का सामना किया पर आज भी दृढ़ता के साथ अडिग हैं। पर अब किला  जर्जर होता जा रहा है। 

किले के चारो  तरफ एक सुदृढ़ परकोटा है जो सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण था । किले के दक्षिण हिस्से में एक खूबसूरत गलियारा है जिनके ऊपर दो  बुर्ज बने है । गलियारे के पास ही दाए हाथ की  तरफ एक बावड़ी नुमा कुण्ड बना है जो मलबे से भरा है । जहां जींद बाबा का स्थान  है भगत  गण यहां दर्शन करने आते हैं  । वहा से आगे निकलने पर। कुछ दूर  की तरफ आते तो वहा कुछ प्राचीन कमरे बने है जो अब ख़तम होने की कगार पर है ।  पास में ही थोड़ी दूर जाने पर जल प्रबंध का बेहतरीन उदाहरण पेश करते दो कुण्ड दिख जाएंगे जो पश्चिम की तरफ है जो  सम्भवतः किले में जल आपूर्ति के मुख्य स्रोत थे । 

धार्मिक सौहार्द का प्रतीक पीर बाबा की दरगाह है जिनकी जगत में बहुत मान्यता है। जो किले बीचों बीच स्थित है।  मुख्य दरवाजा अब जर्जर होता जा रहा है। 

 ज्ञात इतिहास के अनुसार निवाई पर नरुकाओ का अधिपत्य था । 

सम्राट अकबर के काल में सहसमल नरूका एक वीर और बहादुर सेनानायक था गुजरात जितने पर बादशाह ने प्रसन्न हो कर उसे निवाई का क्षेत्र बखसिश कर दिया । 

सहसमल नरूका ने इस नगरी को राज प्रसादों, कलात्मक छतरियों पेयजल कुंडो और छायादार पेड़ो से सजाया सवारा । धार्मिक आस्था से अभिभूत राजा सहसमल ने पहाड़ कि तलहटी में कहीं मंदिरों का निर्माण करवाया ।बुजुर्गो द्वारा निवाई का बखान करते समय निम्न पंक्तिया उनके अधरो से यकायक निकलती हैं।

"गाई है और पुराण, गाई है उपनिषद् सहसमल क्षत्रिय ने निवाई बसाई।"

सहसमल का पुत्र कान्हा नरूका वीर और प्रतापी था तथा उसने अपनी पैतृक जागीर  में वृद्धि की उसका पुत्र केशवदास मुगल सूबेदार महावत खा की सेवा में था, उसने उसे लालसोट की जागीर दी ।  नरूका के बाद निवाई पर राजावतो का अधिकार रहा। मानसिहोत राजावत संग्राम सिंह की राज राजधानी निवाई थी तथा बाद में उनके वंशजों ने झिलाई को अपनी राजधानी बनाया ।

निवाई किले से झिलाय का किला और बगड़ी का किला काफ़ी  ख़ूबसूरत दिखाई देते हैं। और निवाई शहर का विहंगम दृश्य बड़ा ही सुंदर दिखता है । 

स्थानीय लोग और प्रशासन अगर मुहिम शुरू करे तो किले का वैभव लौटाया जा सकता है। टोंक, सवाई माधोपुर, शिवाड़    आने  वाले पर्यटकों के लिए ये एक बेहतरीन स्थल हो सकता है 

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