रवि शर्मा
मालपुरा (सच्चा सागर) गांव की सत्ता में महिलाओं को भले ही 50 फीसदी आरक्षण का लाभ मिला हो, लेकिन आज भी सत्ता इनके हाथों में नहीं है। महिला सरपंच पंचायत के कामकाज के बजाए चूल्हा-चौका के साथ-साथ खेती-बाड़ी संभाल रहीं है। उनकी जगह उनके पति प्रतिनिधि सरपंच बनकर पंचायती कर रहे हैं। साथ ही सचिव उनके पद का लाभ उठा रहे है। महिलाओं को निर्वाचित और निर्विरोध चुने जाने के बाद भी उन्हें अब तक केवल पद का नाम मिला है न कि पूर्ण पद। महिला सरपंच दिनभर घरों में घरेलू कामकाज में ही व्यस्त रहतीं हैं क्योंकि सरपंच का पूरा कामकाज उनके पति या फिर सचिव संभाल रहे हैं। उन्हें तो किसी कागज पर हस्ताक्षर लेना हो तभी बुलाया जाता है। लेकिन यह नहीं बताया जाता आखिर उससे किस लिए हस्ताक्षर कराया जा रहा है। साफ कहा जाए तो महिलाओं का अप्रत्यक्ष रूप से केवल उपयोग किया जा रहा है। ऐसा ही माजरा मालपुरा उपखंड क्षेत्र की ग्राम पंचायत कुराड में देखने को मिला जहा महिला सरपंच की जगह उनके पति द्वारा बैठकों से लेकर उनकी कुर्सी तक पर बैठ कर ग्राम पंचायत के सम्पूर्ण कार्य सम्पादित कर पंचायत राज के नियम कायदो को पलीता लगा रहे है। बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि ग्राम विकास अधिकारी भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभा रहे है।
