प्रशासन की नजरों से दूर वैकल्पिक नशे का बढ़ता खतरा। बच्चे और युवा गिरफ्त में।

 


लोकेश कुमार गुप्ता



चाकसू (सच्चा सागर) देश में नशे का बहुत बड़ा कारोबार  बताया जाता है।शराब ,अफीम ,गांजा, तम्बाकू,के अलावा सिंथेटिक ड्रग्स ,स्मैक, हिरोइन आइस ,कोकीन,मारिजुआना सहित अनेक नाम से अपने पांव पसार रहा है। ड्रग वार डिस्टाॅर्सन और वर्डोमीटर की रिपोर्ट के अनुसार यह कारोबार तीस लाख करोड़ सालाना का है।वहीं नेशनल ड्रग डिपेंडेंट टी्टमेंट ही ही(एनडीडीबी)एमरसन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 16 करोड़ लोग शराब के नशे के आदि है। सभी को नशे के गंभीर परिणामों की जानकारी भी है। भारत में नशे के कारोबार को रोकने के लिए कानून हैं।एनडीपीसी एक्ट 1985 की विभिन्न धाराओं में कार्रवाई की जाती है।इसमें नशीले पदार्थों का सेवन करना ,रखना ,बेचना या उसका आयात -निर्यात करना अथवा इस कारोबार में किसी की सहायता करना ,सभी में गंभीर सजाओं का प्रावधान है।विभाग अपने तरिके से इस कारोबार पर नियंत्रण का हर संभव प्रयास करता रहता है।इसी तरह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्युरो (एनसीबी)गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली महत्वपूर्ण एजेंसी है जो ड्रग्स से संबंधित मामलों की जांच करती है। मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर मादक पदार्थों क्षकी तस्करी को रोकना है। सहयोग के लिए सीमाशुल्क, राज्य पुलिसकर्मियों अनेक एजेंसिंया मिलकर काम करती है।

सबसे बड़ी चिंता एवं आश्चर्यजनक बात यह है कि वर्तमान में उपर वर्णित सभी नशे के अलावा वैकल्पिक नशे का कारोबार धीरे धीरे अबोध बालकों एवं यूवाओं में बढ़ता जा रहा है। यह ऐसी चीजें हैं जो नशा तो करती है लेकिन नशे की श्रेणी में नहीं आती। नशे के नाम पर हर कोई इनको जानता भी नहीं है।

यह नशा पंचर जोड़ने वाली साॅल्युशन, व्हाइटनर ,

थिनर ,कफ सिरप ,पेंट , आयोडेक्स , फेविक्विक और अनेक इंजेक्शन के रुप में गुपचुप त्रिकाल से लिया जा रहा है। इंजेक्शन में एविल ,फेनारगन ,केटामिल आदि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

नशे की चाह में बहुत से बालक,युवा कफ सिरप का उपयोग शराब की तरह करते हैं।सस्ता एवं आसानी से दवाइयों की दुकान पर उपलब्ध हो जाने से तथा कथित नशेड़ियों को सुविधा रहती है। हालांकि पिछले 

चार-पांच वर्ष से मेडिकल एवं हेल्थ विभाग एवं ड्रग नियंत्रण अधिकारियों ने ऐसे कफ सिरप मार्केट से हटा दिए जिनमें नशे का कंटेंट जैसे कोडिंन ,सीटीएम ,पेनाइलएफिरिन आदि मिलते थे। ड्रग कंट्रोलर ने अनेक दुकानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी की है।

        इन अबोध बालकों को कौन नियंत्रित करें जो नियमित रुप से स्टेशनरी की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध होने वाला पिंचर लगाने का सोल्युशन व्हाइटनर खरीदते हैं एवं रूमाल में लगाकर सूंघ कर नशा करते हैं। नशे के आदि इन बालकों को यह भी नहीं पता कि उनकी जिन्दगी तबाह हो रही है।इसी तरह पेपर पर लिखे को मिटाने के लिए बिकने वाला व्हाइटनर को नशे के रूप में उपयोग किया जाता है।

इसे बेचने के लिए किसी लाइसेंस की भी जरूरत नहीं होती।व्हाइटनर पाॅलीवायनिल क्लोराइड (पीवीसी) का एक बहुला है।इसे घोलने करने के लिए एल्कोहल आधारित दृव्य की आवश्यकता होती है और इसी लिए इसका नशे में प्रयोग होता है। हालांकि सुप्रिम कोर्ट के निर्देश के बाद निर्माता कम्पनियों ने हाई सिक्योरिटी पैकिंग में बिक्री का वादा किया है लेकिन किसी भी बुक स्टोरही या जनरल स्टोर की दुकान पर आसानी से मिल जाता है। स्कूली बालकों में ऐसे वैकल्पिक नशे की आदत उनका भविष्य खराब कर सकती है।

इस नवीन पीढ़ी को सहज सुलभ एवं सस्ते नशे के विकल्प से सरकार परिवार एवं समाज के साथ साथ 

शिक्षकों को भी आगे आकर बचाने के उपाय करने होंगे।

तम्बाकू का उपयोग विभिन्न रूपों में इस गति से बढ़ रहा है कि विक्रेताओं के वारे न्यारे हो रहे हैं।लाॅकडाउन अवधि में यह कारोबार  जबरदस्त तरिके से बढ़ा। गुटखा,जर्दा,बीड़ी सिगरेट आदि के दीवाने दसगुना अधिक कीमत देकर भी नशा करते रहे।इस नशे पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो  फिर 

कंट्रोल से बाहर हो जाऊंगा। एक्सपर्ट चिकित्सक कहते हैं कि यह गुटखा ज्यादा का नशा  अनेक प्रकार की जानलेवा बीमारियों का कारण बन रहा है।

दुकानदारों का लालच एवं इन वस्तुओं के नशे के रुप में प्रयोग पर आखिर बंदिश कौन लगाएगा। वैकल्पिक नशे को रोकने के लिए प्रशासन भी असहाय नजर आता है।अपने लाडलो पर अभिभावकों को विशेष 

ध्यान देने की आवश्यकता है।

फोटो -जनरल स्टोर की दुकानों पर आसानी उपलब्ध व्हाइटनर ,नशा कर रहे हैं अबोध बालक

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