टमको:लोकरंग रा गीतां री लूंठी पोथी
साहित्य मांयनै कहाणी,उपन्यास,नाटक, संस्मरण, रिपोतार्ज, डायरी,जातरा वरतांत, ग़ज़ल,दूहा,छंद,कविता,गीत आद कैई न्यारी-न्यारी विधावां है । आं मांयनै गीत ऐड़ी सरस विधा है जकी लोकमानस रा अंतस नै झट सूं आपरै बस मं कर लैवे अर आपरी छाप मिनख री चेतना मं छोड़ दैवे । गीत आपां रै अठै वेद ऋचावां मांयनै ई सामिल हो अर अठै रा उच्छब,संस्कार ई गीत रै बिना अलूणा लागै है । मायड़भासा रा लूंठा गीतकार 'राजकुमार बादल' जी री पोथी "टमको" इणीज भांत रा लोकरंग मं डूब्योड़ा गीतां री साख भरै है । 'बादल' जी लगैटगै लारला दो दसकां सूं मंचां माथै काव्यपाठ करता थकां मायड़भासा राजस्थानी नै आपरा गीतां सूं जनजन रै हिरदै तांई पूगावण रो महतावू काम ई कर रिया है ।
"टमको" काव्यपोथी मांय चाळीस गीत सामिल है जकां मं कवि आपरी दूरदृष्टि सूं समाज री अलेखूं अबखायां, जीयाजूण री पीड़,राजनीति री विद्रूपतावां,नायिका रै सिंगार,नसापता रै खिलाफ अर देसप्रेम री भावना सागै'ई आपणै अठै रा उच्छबां माथै ई भावां नै परोटतां थकां घणा चावा-ठावा गीत लिख्या है ।
'जादुगरणी' गीत मांयनै सिंगार रो बरणन करता थकां 'बादल' जी री बिंब कला री बानगी देखो:-
'जडया पान अब जड़ां उगाड़ी ऊमर को लागूं छूं
सपनां सूं घबरा गयो अब तो रात-रात जागूं छूं
सूखो ठूंठ बडकरियो छै आम्बा की डाऴ तळै
आजा सांची मांची आजा क्यों छाती पे मूंग दळै'
इणीज भांत रो ऐक सांतरो बिंब 'सावण री ठण्डी बौछारां' सूं आपरी निजर:-
'सावण की ठण्डी बौछारां भीगी-भीगी गौरणी
आमी हळदी सी काया पे फीकी लागे औढणी
ढळका चालण जनम सुधारण मरदां रा चित चोरणी
सावण की ठण्डी बौछारां भीगी-भीगी गौरणी'
ऐक अंग्रेज विद्वान बरसां पैली कैयो हो कै,' Democracy in the government of fools by the fools and for the fools.
अर्थात लोकतंतर मूरखां रो मूरखां माथै मूरखां खातर होवण हाळो सासन है । जठै तांई इण देस री जनता सई लोगां रो चुणाव नीं करैला वठै तांई लोकतंतर मं जनता रो शोषण होवतो रैवेला । कवि 'बादल' जी आपरी तीसरी आंख सूं इण देस री समसामायिक समस्यावां नै दैखे अर आपरी कलम सूं लोगां नै जागरूक बणावण रो काम'ई करै है ।
'तीतरी के वेलवेट को लैंगो लाओ जी' गीत सूं उद्धरण:-
'देस भाड़ मं जावै थै तो मौज मनाओ जी
तीतरी के वेलवेट को लहंगो लाओ जी
परचारां की गाड़ी आई लारे भाया नोट
लारे थेली चालबा दे गाड़ी भरणाभोट
पछे पांच बरस तक पाछे पाछे धूळो खाओजी
तीतरी के वेलवेट को लहंगो लाओ जी'
इण गीत संग्रै मांय लोकरंजन रा कैई गीत है जकां मांयनै सहज हास-परिहास है पण हास-परिहास करता थकां'ई कवि हर बार चतराई सूं आपां रा समाज नै महतावू संदेस दै जावै । साहित्य वो ही सफल हुवै जिणमें किणी न्ह किणी भांत रो संदेस आपां रै समाज नै मिलतो हुवै इण दृष्टि सूं अ सगळा गीत आपरै उद्देश्य माथै सफल गीत ई है ।
'बाजण लाग्या मंगळ्या ढ़ोल' ऐड़ो ई लूंठो गीत है जिण मांयनै कवि किरकेट नै बिंब बणा'र गिदगली चलावतां थकां प्रेमी रै माध्यम सूं आपरी प्रेमिका नै सीख बतावण रो काम करै है । कीं ओळ्यां:
'अंपायर को राख भरोसो बैट-बॉल का जोड़ा छै
कसी बॉल पर गिल्ली उड़जा सब सिणगार रखोड़ा छै
यो जीवन है इक किरकेट सब तगडी राखो रन रेट
सबने पैविलियन जाणूं है मूरख मूंछ मरोड़े री
बाजण लाग्या मंगळ्या ढ़ोल'
दारूड़िया बलम खातर लिखियोड़ो गीत 'माचा री दावण रैगी तणी की तणी' बादल जी रो लिखियोड़ो घणो चावो गीत है जिणनै सुणबा री मंचां माथै घणी फरमाइस हुवै है । एक अंतरो इण गीत रो:-
'काजळिया री रेख म्हां सूं ठेचरी करै
काळजिया में उण्डी-उण्डी सैरियां पड़ै
मेहन्दी राच्या हाथ म्हारा आग ज्यूं बळै
मोतीड़ां री माळा जाणे फंसरी गळै
काळा-काळा केस जाणे नथ मं फंसै
चूड़ी पाटला भी हाल पै हंसै
पीऊ-पीऊ मद अंग-अंग बरसै रे
आरे कामदेव थारी रति तरसै रे
फूलां- सन्दी सेज बणगी भाला की अणी
मांचा की दावण रेगी तणी की तणी'
मन तो ओ करै'कै इण पोथी रा हरेक गीत सूं कीं न्ह कीं ओळ्यां अठै लिखाऊं पण पोथी-परिचै री आपरी कीं सीमा हौवै है जिण रो ध्यान ई मनै राखणो पड़ैला । इण पोथी रा गीतां मांयनै हाड़ौती,मेवाड़ी अर ढूंढाड़ी बोल्यां रो रस भर्यो थको है जको मायड़भासा री विविधता नै बतावै है । कैई ऐड़ा सबद ई इण पोथी मांयनै आया है जकां रो अरथ आज री मोबाइल पीढ़ी नीं जाणै है । ठेचरी, भड़भेटी, बडकरियो, झरड़ागी, टमको, मंगळ्या, गलगली, लेजदेज,चटका आद कितरा ई सबद गिणाय सकां हां । इण रै सागै'ई अ गीतां मांयनै कवि 'बादल जी' खैराड़ अंचल रा मुहावरां अर लोकोक्तियां रो ई भरपूर प्रयोग कीधो है जिणसूं ऐ गीतां रो रस दूणो बधगो है । मानीता 'राजकुमार बादल' जी रो घणो-घणो आभार जतावूं कै म्हारा जस्या ऐक अदना सा लिखारा नै आप दो सबद लिखण रो हुकुम दिरायो । आसा ई नीं पूरो विसवास है'क राजस्थानी गीतां रै राजकुमार री इण पोथी नै मायड़भासा रा हेताळु घणो'ई मान सम्मान दिरावसी अर मायड़भासा रो ओ 'टमको' राज रै हिया री टाटी ई अवस खोलसी । 'बादल' जी नै घणा-घणा रंग ।
शुभमस्तु ।
:मोहन पुरी
गाँव- होड़ा
तहसील-मांडलगढ़
भीलवाड़ा (राज.)
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