प्राचीन गंगा/ यमुना की प्रतिमाओं को सिंदूर से रंग कर किया जा रहा है ख़राब ।




मनोज मीणा भैरुबूल्या 


दैनिक सच्चा सागर (नि.स) धर्मनगरी निवाई पर प्राचीन समय में चौहानों का शासन रहा है   । यहां कही प्राचीन मंदिर रहे है । जिनके अवशेष यत्र तत्र फैले हैं ।

निवाई के प्राचीन कुण्ड धार्मिक आस्था के प्राचीन काल से प्रमुख स्थान रहे है । यहां कही प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएं खंडित रखी है । उनमें से बात करते है कुंडो स्थित हनुमान मन्दिर के पीछे उत्तर दिशा  की तरफ वाली  दीवार पर लगी इन मूर्तियों की । ये मूर्तियां यहां कही खुदाई में मिली होगी जो काफ़ी दुर्लभ है । जिन्हें मन्दिर की दीवार  में चिनवा दिया गया है। यहां से गुजरने वाले हर सख्स की नज़र पड़ती है और वो कोतूहल से इन्हें देखते हुए निकल जाते है । इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं होती वो समझते है कि होगी किसी देवी की ।

 ख़ैर पुरातत्वविद शिवम् दूबे मुम्बई के अनुसार ये प्रतिमाएं दाए खड़ी गंगा  /यमुना ,बाए खड़ी  नायिकी हैं । जो 11वी से 12वी शताब्दी की रही होगी । 

प्राचीन काल से ही मन्दिर स्थापत्य कला में देवी शक्ति का प्रमुख स्थान रहा है। प्राचीन मंदिरों में दरवाजे के दोनों गंगा और यमुना की प्रतिमाएं उकेरी जाती रही हैं । इन्हे जल देवियों के रूप में स्वीकार किया गया है। 

गंगा और यमुना के हाथो में घड़ा रहता है और उन्हें खूबसूरत युवतियों का रूप दिया जाता है। इनमे फ़र्क केवल उनके वाहनों को लेकर होता है । इन देवियों की सवारी क्रमशः गंगा मकर (मगरमच्छ), यमुना कछुआ है । 

गंगा का स्वभाव हसमुख , चुलबुली और तेज  दर्शाया जाता। वहीं यमुना शर्मीली , शिथिल और थोड़ी- सी निराश , बिल्कुल कछुए की तरह दर्शाया जाता है। ये दोनों देवियां मंदिर को एक तीर्थ में बदल देती हैं जो विश्व को देवीय शक्ति से जोड़ती हैं। 


मंदिर प्रशासन और धार्मिक आस्था के वशीभूत हो कर लोगो ने इन प्रतिमाओं को सिंदूर से रंग दिया जो एक दण्डनीय  अपराध है । पूरा वस्तुओ को ऐसे ख़तम नहीं किया जा सकता  किसी भी प्राचीन प्रतिमा के रंग रोगन नहीं कर सकते।  ये हमारा प्राचीन इतिहास है । 

इनकी सार सम्भाल करना हमारा कर्त्तव्य है।

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